squint in hindi

आँखों का स्वस्थ रहना और स्पष्ट दिखाई देना जितना जरुरी है उतना ही जरुरी है उनका सही आकर और मस्तिष्क से तालमेल होना। हमारी दोनों आँखों के मध्य एक उचित तालमेल होता है जिस की वजह से दोनों आँखें एक ही टाइम में एक ही बिंदु पर फोकस करती है और साफ़ प्रत्तिबिम्ब बनाती है।

यदि किसी कारणवश जन्म से आँखों के आकर में कुछ विकृति या तिरछापन होता है तो मस्तिष्क दोनों आंखों से अलग-अलग दृश्य संकेत प्राप्त करता है और कमजोर आंखों से मिलने वाले संकेत को नज़रअंदाज़ कर देता है। इस वजह से डबल विज़न की समस्या हो जाती है जिसको भैंगापन कहते है।

खासकर ये समस्या बच्चो में होती है लेकिन बड़े लोगो में भी भैंगापन किसी दुर्घटनावश, आँखों में चोट लगने या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण हो सकता है। समस्या गंभीर होने पर उपचार करवाना जरुरी है वरना देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

भैंगापन क्या होता है? (Squint in Hindi)

जब दोनों आंखें ठीक तरह से अलाइन या एक सीध में नहीं होती हैं तो इसको भैंगापन या आँखों का तिरछापन कहा जाता है। साइंटिफिक लैंग्वेज में इसको स्क्विंट या स्ट्राबिस्मस या क्रॉस्ड आईस कहते हैं।

भैंगापन की समस्या तब आती है जब एक आंख ज्यादा ही अंदर की ओर या बाहर की ओर या नीचे की ओर या उपर की ओर हो जाती है। आँखों के एक सीध में न होने के कारण वो एक साथ एक बिंदु पर केंद्रित नहीं हो पाती हैं और दोनों आंखें अलग-अलग दिशाओं में देखती हैं। भैंगापन की समस्या से जूझ रहे लोगो को अन्य व्यक्तियों से भी बातचीत करने झिझक लगती है।

भैंगापन की समस्या को ठीक किया जा सकता है, अधिकतर मामलों में आंखों का भेंगापन पूरी तरह ठीक हो जाता है।

भैंगापन के प्रकार: (Types of Squint)

आंख की स्थिति और आकर के आधार पर भैंगेपन की समस्या निम्न प्रकार की होती है:

हाइपरट्रोपिया

हाइपरट्रोपिया जब आंख उपर की ओर मुड़ जाती है।

हाइपोट्रोपिया

हाइपोट्रोपिया जब आंख नीचे की ओर मुड़ जाती है।

एसोट्रोपिया

एसोट्रोपिया जब आंख अंदर की ओर चली जाती है।

एक्सोट्रोपिया

एक्सोट्रोपिया जब आंख बाहर की ओर चली जाती है।

भैंगापन के कारण?

सामान्यत: भैंगेपन की समस्या जन्मजात होती है, लेकिन आँखों की चोट, बीमारियां या दुर्घटनाएं भी इसका कारण बन सकती हैं:

  • जन्मजात विकृति: गर्भ में किसी तरह की शारीरिक विकास में समस्या आने पर आंख की मांसपेशियों, तंत्रिकाओं और मस्तिष्क में संप्रेषण/संचार असामान्य हो जाता है, इस वजह से दोनों आंखों के बीच समन्वय प्रभावित होता है।

 

  • अनुवांशिकी (जिनैटिक): भैंगेपन की समस्या अनुवांशिकी पर भी निर्भर करती है, अगर परिवार के किसी सदस्य में भैंगेपन की शिकायत है, तो नवजात शिशु में इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। पांच साल की उम्र तक इसके विकसित होने की आशंका वनी रहती है।

 

  • दुर्घटनाएं: दुर्घटनावश मस्तिष्क में चोट लग जाने, आंखों की तंत्रिकाओं या आँख का पर्दे (रेटिना) का क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से भी भैंगापन विकसित हो सकता है।

 

  • आंखों से संबंधित समस्याएं: निकट दृष्टिदोष, दूर दृष्टिदोष या एस्टिग्मेटिज़्म के कारण भी भैंगेपन की समस्या हो सकती है।

 

  • वायरस का संक्रमण: वायरल फिवर, चेचक, खसरा, मेनेजाइटिस आदि भी भैंगेपन का कारण बन सकते हैं।

 

  • अन्य स्वास्थ्य समस्याए: मस्तिष्क विकार, मस्तिष्क का ट्यूमर, स्ट्रोक, मधुमेह(डायबिटीज़) या मस्तिष्क पक्षाघात (सेरिब्रल पाल्सी) जैसी समस्याएं भैंगेपन के लिए एक जोखिम कारक हैं।

भैंगापन के लक्षण:

भैंगेपन का सबसे सामान्य लक्षण है, आंखों का तिरछा होना या उनका एकसाथ एक बिंदु पर फोकस नहीं हो पाना। इसके अलावा निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

  • दृष्टि प्रभावित होना।
  • दोहरी दृष्टि (डबल विज़न)।
  • गहराई की अनुभूति प्रभावित होना।
  • आंखों में खिंचाव या सिरदर्द

भैंगेपन की जांच:

भैंगेपन का पता लगाने के लिए ये विधि उपयोग में लायी जाती है:

  • कार्नियल आई रिफ्लेक्स टेस्ट: इस टेस्ट का प्रयोग कर के यह पता लगाया जाता है कि आंख में भैंगापन कितना है और किस प्रकार का है।

 

  • विज़ुअल एक्युटी टेस्ट: विज़ुअल एक्युटी टेस्ट के द्वारा भैंगेपन के कारण दृष्टि पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच की जाती है।

भैंगेपन का उपचार:

जन्म या बीमारी की शुरूआत में ही अगर डिटेक्ट हो जाए तो भैंगेपन का उपचार अधिक प्रभावी रहता है, समस्या बढ़ने पर इसका पूरी तरह उपचार संभव नहीं है।

छोटे बच्चो में छह साल की उम्र तक उपचार कराना काफी प्रभावी रहता है अन्यथा इसका उपचार किसी कुशल नेत्र चिकित्स्क से कभी भी करवाया जा सकता है।

जब किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या, चोट या बीमारी के कारण भैंगेपन की समस्या होती है तो उसका उपचार जरूरी हो जाता है और अगर समय रहते सर्जरी करा ली जाए तो परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं।

नेत्र चिकित्सक भैंगेपन के उपचार के लिए निम्न विधियां अपना सकते है:

चश्मा और कांटेक्ट लेंस: यदि आँखों में एसोट्रोपिया और दूरदृष्टि दोष के कारण भैंगेपन की समस्या होती है, तो चश्मे और कांटेक्ट लेन्स से ठीक हो जाती है। समस्या अधिक होने पर सर्जरी की जाती है।

बोटुलिनम टॉक्सिक इंजेक्शन या बॉटोक्स: बोटॉक्स इंजेक्शन का उपयोग भैंगेपन की समस्या का कारण पता नहीं लगने की स्थिति में किया जाता है। बोटॉक्स इंजेक्शन आंख की सतह की मांसपेशी में लगाया जाता है, ये उन मांसपेशियों को अस्थायी रूप से कमजोर कर देता है और आंखों को ठीक तरह से अलाइन/एक सीध में करने में सहायता कर सकता है।

सर्जरी (ऑपरेशन): अन्य तरीको से जब भैंगेपन का उपचार संभव नहीं होता है तो नेत्र चिकित्सक आखिरी में सर्जरी की सलाह देते है। सर्जरी कर के आंखों को रि-अलाइन और एक सीध में कर दिया जाता है तथा बाइनोक्युलर विज़न (द्विनेत्रीय दृष्टि) को पुनः स्थापित कर दिया जाता है।

भैंगेपन की सर्जरी के साइड इफेक्ट्स (ऑपरेशन के दुष्प्रभाव):

वैसे तो भैंगेपन की सर्जरी सुरक्षित है, लेकिन कभी कभी आँखों के अलाइनमेंट/संरेखण पूरी तरह ठीक नहीं होने के कारण निम्न लक्षण दिखाई पढ़ सकते है:

  • डबल विज़न (दोहरी दृष्टि)।
  • संक्रमण।
  • घाव पड़ जाना।
  • दृष्टिहीनता।
  • ओवर करेक्शन (जरूरत से ज्यादा सुधार) के कारण दूसरी दिशा में भैंगापन आ जाना।

भैंगेपन का उपचार न कराने पर होने वाले नुक्सान:

अगर बीमारी गंभीर है और उसका ठीक समय पर उपचार ना कराया जाए तो भैंगापन लैजी आई या एम्बलायोपिया का कारण बन सकती है।

ऐसा होने पर मस्तिष्क एक आंख से मिलने वाले संकेतो को नज़रअंदाज़ कर देता है। भैंगेपन की अत्यधिक गंभीर समस्या दृष्टिहीनता का कारण बन सकती है। कभी-कभी बचपन में सफल उपचार के बाद, भैंगापन व्यस्क आयु मे दोबारा हो जाता है।

Categories : Eye Diseases Eye Care

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